जमील नक़वी
अशआर 1
टिमटिमाते रहें बुझती हुई यादों के चराग़
दिल की वीरानी पे गर आप को इसरार न हो
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere