जमील उस्मान के शेर
सो जाइए हुज़ूर कि अब रात हो गई
जो बात होने वाली थी वो बात हो गई
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बदलेगी काएनात मिरी बात मान लो
मुझ से मिलाओ हात मिरी बात मान लो
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है ज़िंदगी बग़ैर तुम्हारे इक इज़्तिराब
दे दो इसे सबात मिरी बात मान लो
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किस ने कहा है तुम से कि ता-उम्र साथ दो
है चार दिन की बात मिरी बात मान लो
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हम राज़-ए-दिल छुपाते मगर अपनी ज़िंदगी
पूरी खुली किताब अगर हो तो क्या करें
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