जामी रुदौलवी के शेर
भीड़ में ज़माने की हम सदा अकेले थे
वो भी दूर है कितना जो रग-ए-गुलू में है
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ज़हर ज़िंदगानी का पी के अक़्ल आई है
दारू-ए-ग़म-ए-हस्ती तलख़ी-ए-सुबू में है
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