जौहर ज़ाहिरी के शेर
हम रहे हैं मंज़िलों ही मंज़िलों में उम्र भर
जैसे क़िस्मत में किसी पहलू शकेबाई न थी
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वो लोग जो कि मआल-ए-चमन से वाक़िफ़ हैं
ख़िज़ाँ-नसीब गुलों की बहार क्या देखें
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