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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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जावेद कमाल रामपुरी

1930 - 1978 | अलीगढ़, भारत

जावेद कमाल रामपुरी

ग़ज़ल 14

नज़्म 4

 

अशआर 10

आई थी चंद गाम उसी बे-वफ़ा के साथ

फिर उम्र भर को भूल गई ज़िंदगी हमें

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दरवाज़ों के पहरे हैं दीवारों के संगीनें

होता जो मिरे बस में इस घर से निकल जाता

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दिन के सीने में धड़कते हुए लम्हों की क़सम

शब की रफ़्तार-ए-सुबुक-गाम से जी डरता है

फिर कई ज़ख़्म-ए-दिल महक उट्ठे

फिर किसी बेवफ़ा की याद आई

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हम आगही को रोते हैं और आगही हमें

वारफ़्तगी-ए-शौक़ कहाँ ले चली हमें

क़ितआ 7

पुस्तकें 1

 

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