जयंत परमार
ग़ज़ल 5
नज़्म 10
अशआर 5
बिस्तर पे लेटे लेटे मिरी आँख लग गई
ये कौन मेरे कमरे की बत्ती बुझा गया
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दिल को दुखाती है फिर भी क्यूँ अच्छी लगती है
यादों की ये शाम सुहानी दिल में क़ैद हुई
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हर एक शाख़ के हाथों में फूल महकेंगे
ख़िज़ाँ का पेड़ भी कपड़े बदलना चाहता है
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लम्स की वो रौशनी भी बुझ गई
जिस्म के अंदर अंधेरा और है
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जुगनू था तारा था क्या था
दरवाज़े पर कौन खड़ा था
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