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नअत1
जिगर मुरादाबादी के क़िस्से
किसी बुलबुल का दिल जला होगा
एक बार मुशायरा हो रहा था। एक मुस्लिम-उल-सबूत उस्ताद उठे और उन्होंने तरह का एक मिसरा दिया, “आ रही है चमन से बू-ए-कबाब” बड़े-बड़े शायरों ने तब्अ-आज़माई की लेकिन कोई गिरह न लगा सका। उनमें से एक शायर ने क़सम खा ली कि जब तक गिरह न लगाएंगे, चैन से नहीं
शेर की ख़ामी
जिगर मुरादाबादी के किसी शे’र की तारीफ़ करते हुए किसी मनचले ने उनसे कहा, “हज़रत! उस ग़ज़ल के फ़ुलां शे’र को मैंने लड़कियों के एक हुजूम में पढ़ा और पिटने से बाल-बाल बचा।” जिगर साहब ने हँसते हुए कहा, “अ’ज़ीज़म! उस शे’र में ज़रूर कोई ख़ामी होगी वरना आप
रिंद से मौलवी
एक बार जोश मलीहाबादी ने जिगर साहब को छेड़ते हुए कहा, “क्या इबरतनाक हालत है आपकी, शराब ने आपको रिंद से मौलवी बना दिया और आप अपने मक़ाम को भूल बैठे। मुझे देखिए में रेल के खम्बे की तरह अपने मक़ाम पर आज भी वहाँ अटल खड़ा हूँ, जहाँ आज से कई साल पहले था।” जिगर