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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
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जिगर मुरादाबादी
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जिगर मुरादाबादी
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Jigar reciting his poetry in a mushaira जिगर मुरादाबादी
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Wo Sabza Nang'e Chaman Hai जिगर मुरादाबादी
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जान कर मिन-जुमला-ए-ख़सान-ए-मय-ख़ाना मुझे जिगर मुरादाबादी
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दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद जिगर मुरादाबादी
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ये दिन बहार के अब के भी रास आ न सके जिगर मुरादाबादी
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जिगर मुरादाबादी
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अगर न ज़ोहरा-जबीनों के दरमियाँ गुज़रे जिगर मुरादाबादी
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अल्लाह अगर तौफ़ीक़ न दे इंसान के बस का काम नहीं जिगर मुरादाबादी
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क्या त'अज्जुब कि मिरी रूह-ए-रवाँ तक पहुँचे जिगर मुरादाबादी
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जेहल-ए-ख़िरद ने दिन ये दिखाए जिगर मुरादाबादी
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जान कर मिन-जुमला-ए-ख़सान-ए-मय-ख़ाना मुझे जिगर मुरादाबादी
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दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद जिगर मुरादाबादी
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ये दिन बहार के अब के भी रास आ न सके जिगर मुरादाबादी
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शाएर-ए-फ़ितरत हूँ जब भी फ़िक्र फ़रमाता हूँ मैं जिगर मुरादाबादी
शायरी वीडियो
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Kahkashan (Documentary on Jigar Muradabadi) Part 1
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Kahkashan (Documentary on Jigar Muradabadi) Part 2
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Kahkashan (Documentary on Jigar Muradabadi) Part 3
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Kahkashan (Documentary on Jigar Muradabadi) Part 4
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Kahkashan (Documentary on Jigar Muradabadi) Part 5
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Yahan kaamp jaate hain भारती विश्वनाथन
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इस 'इश्क़ के हाथों से हरगिज़ न मफ़र देखा बेगम अख़्तर
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कोई ये कह दे गुलशन गुलशन बेगम अख़्तर
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दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद बेगम अख़्तर
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अगर न ज़ोहरा-जबीनों के दरमियाँ गुज़रे विनोद सहगल
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अब तो ये भी नहीं रहा एहसास अज्ञात
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आँखों का था क़ुसूर न दिल का क़ुसूर था नाज़िश
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आँखों में बस के दिल में समा कर चले गए अज्ञात
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आदमी आदमी से मिलता है आबिदा परवीन
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आया न रास नाला-ए-दिल का असर मुझे इक़बाल बानो
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इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है आबिदा परवीन
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कभी शाख़ ओ सब्ज़ा ओ बर्ग पर कभी ग़ुंचा ओ गुल ओ ख़ार पर आशा भोसले
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कोई ये कह दे गुलशन गुलशन बेगम अख़्तर
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जो अब भी न तकलीफ़ फ़रमाइएगा अज्ञात
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तबीअत इन दिनों बेगाना-ए-ग़म होती जाती है बेगम अख़्तर
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तबीअत इन दिनों बेगाना-ए-ग़म होती जाती है शांति हीरानंद
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तिरे जमाल-ए-हक़ीक़त की ताब ही न हुई शिशिर पारखी
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दास्तान-ए-ग़म-ए-दिल उन को सुनाई न गई जगजीत सिंह
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दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं सुधीर नारायण
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दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं अज्ञात
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नियाज़ ओ नाज़ के झगड़े मिटाए जाते हैं विविध
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नियाज़ ओ नाज़ के झगड़े मिटाए जाते हैं हबीब वली मोहम्मद
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मोहब्बत में ये क्या मक़ाम आ रहे हैं अज्ञात
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शाएर-ए-फ़ितरत हूँ जब भी फ़िक्र फ़रमाता हूँ मैं विविध
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हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं बेगम अख़्तर
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हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं बेगम अख़्तर
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शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई आबिदा परवीन