जोज़फ़ डिसिल्वा के शेर
ये शर्मगीं निगह ये तबस्सुम नक़ाब में
क्या बे-हिजाबियाँ हैं तुम्हारे हिजाब में
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वो सादगी से तग़ाफ़ुल को नाज़ कहते हैं
मगर सिखाती है शोख़ी कि इम्तिहाँ कहिए
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