कैफ़ अंसारी
ग़ज़ल 4
अशआर 1
न जाने कौन सी मंज़िल को चल दिए पत्ते
भटक रही हैं हवाएँ मुसाफ़िरों की तरह
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere