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Kaifi Azmi's Photo'

कैफ़ी आज़मी

1918 - 2002 | मुंबई, भारत

लोकप्रिय प्रमुख प्रगतिशील शायर और फि़ल्म गीतकार/हीर राँझा और काग़ज़ के फूल के गीतों के लिए प्रसिद्ध

लोकप्रिय प्रमुख प्रगतिशील शायर और फि़ल्म गीतकार/हीर राँझा और काग़ज़ के फूल के गीतों के लिए प्रसिद्ध

कैफ़ी आज़मी

ग़ज़ल 21

नज़्म 43

अशआर 22

की है कोई हसीन ख़ता हर ख़ता के साथ

थोड़ा सा प्यार भी मुझे दे दो सज़ा के साथ

ग़ुर्बत की ठंडी छाँव में याद आई उस की धूप

क़द्र-ए-वतन हुई हमें तर्क-ए-वतन के बाद

बस इक झिजक है यही हाल-ए-दिल सुनाने में

कि तेरा ज़िक्र भी आएगा इस फ़साने में

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मुद्दत के बा'द उस ने जो की लुत्फ़ की निगाह

जी ख़ुश तो हो गया मगर आँसू निकल पड़े

रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई

तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
Kaifi Azmi at a mushaira

कैफ़ी आज़मी

Nazm-Aazadi

कैफ़ी आज़मी

Tribute to Guru Dutt by Kaifi Azmi

कैफ़ी आज़मी

Zikr-e-Haq itna mukhasar bhi nahi - Kaifi Azmi

कैफ़ी आज़मी

औरत

उठ मिरी जान मिरे साथ ही चलना है तुझे कैफ़ी आज़मी

ख़ार-ओ-ख़स तो उठें रास्ता तो चले

कैफ़ी आज़मी

ख़ार-ओ-ख़स तो उठें रास्ता तो चले

कैफ़ी आज़मी

आख़िरी रात

चाँद टूटा पिघल गए तारे कैफ़ी आज़मी

आदत

मुद्दतों मैं इक अंधे कुएँ में असीर कैफ़ी आज़मी

आदत

मुद्दतों मैं इक अंधे कुएँ में असीर कैफ़ी आज़मी

इब्न-ए-मरयम

तुम ख़ुदा हो कैफ़ी आज़मी

औरत

उठ मिरी जान मिरे साथ ही चलना है तुझे कैफ़ी आज़मी

की है कोई हसीन ख़ता हर ख़ता के साथ

कैफ़ी आज़मी

ख़ार-ओ-ख़स तो उठें रास्ता तो चले

कैफ़ी आज़मी

ज़िंदगी

आज अँधेरा मिरी नस नस में उतर जाएगा कैफ़ी आज़मी

दूसरा बन-बास

राम बन-बास से जब लौट के घर में आए कैफ़ी आज़मी

दूसरा बन-बास

राम बन-बास से जब लौट के घर में आए कैफ़ी आज़मी

बहरूपनी

एक गर्दन पे सैकड़ों चेहरे कैफ़ी आज़मी

मकान

आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है कैफ़ी आज़मी

वो भी सराहने लगे अर्बाब-ए-फ़न के बा'द

कैफ़ी आज़मी

वो भी सराहने लगे अर्बाब-ए-फ़न के बा'द

कैफ़ी आज़मी

सुना करो मिरी जाँ इन से उन से अफ़्साने

कैफ़ी आज़मी

ऑडियो 28

क्या जाने किस की प्यास बुझाने किधर गईं

कहीं से लौट के हम लड़खड़ाए हैं क्या क्या

की है कोई हसीन ख़ता हर ख़ता के साथ

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