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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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कैफ़ी चिरय्याकोटी

1890 - 1956 | आज़मगढ़, भारत

कैफ़ी चिरय्याकोटी

ग़ज़ल 18

अशआर 2

अब तुम भी ज़रा हुस्न-ए-जहाँ-सोज़ को रोको

हम तो दिल-ए-बेताब को समझाए हुए हैं

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इधर तो तूल दिया है उमीद को उस ने

उधर हयात अता की है मुख़्तसर मुझ को

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