कैफ़ी हैदराबादी
ग़ज़ल 6
नज़्म 2
अशआर 12
दिल लेने के अंदाज़ भी कुछ सीख गया हूँ
सोहबत में हसीनों की बहुत रोज़ रहा हूँ
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रक़ीब दोनों जहाँ में ज़लील क्यूँ होता
किसी के बीच में कम-बख़्त अगर नहीं आता
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वही नज़र में है लेकिन नज़र नहीं आता
समझ रहा हूँ समझ में मगर नहीं आता
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सुब्ह को खुल जाएगा दोनों में क्या याराना है
शम्अ परवाना की है या शम्अ का परवाना है
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हम आप को देखते थे पहले
अब आप की राह देखते हैं
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