aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1880 - 1920
दिल लेने के अंदाज़ भी कुछ सीख गया हूँ
सोहबत में हसीनों की बहुत रोज़ रहा हूँ
रक़ीब दोनों जहाँ में ज़लील क्यूँ होता
किसी के बीच में कम-बख़्त अगर नहीं आता
वही नज़र में है लेकिन नज़र नहीं आता
समझ रहा हूँ समझ में मगर नहीं आता
सुब्ह को खुल जाएगा दोनों में क्या याराना है
शम्अ परवाना की है या शम्अ का परवाना है
हम आप को देखते थे पहले
अब आप की राह देखते हैं
Batteesi Beech Zaban
हयात-ए-कैफ़ी
1985
Nazm-e-Kaifi Hyderabadi
1927
सर मस्त
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