कालीदास गुप्ता रज़ा
अशआर 14
ज़माना हुस्न नज़ाकत बला जफ़ा शोख़ी
सिमट के आ गए सब आप की अदाओं में
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अज़ल से ता-ब-अबद एक ही कहानी है
इसी से हम को नई दास्ताँ बनानी है
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हम न मानेंगे ख़मोशी है तमन्ना का मिज़ाज
हाँ भरी बज़्म में वो बोल न पाई होगी
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चमन का हुस्न समझ कर समेट लाए थे
किसे ख़बर थी कि हर फूल ख़ार निकलेगा
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अब कोई ढूँड-ढाँड के लाओ नया वजूद
इंसान तो बुलंदी-ए-इंसाँ से घट गया
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