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कमल हातवी

1971 | लखनऊ, भारत

कमल हातवी

ग़ज़ल 18

अशआर 3

हवा से कह दो कि यूँ ख़ुद को आज़मा के दिखाए

बहुत चराग़ बुझाती है इक जला के दिखाए

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बिछड़ जाने का ग़म तौबा अरे तौबा अरे तौबा

ये वो है जो कि दीमक की तरह सब चाट जाता है

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नज़र आँखों की गुम सी हो रही है

कि अब तुम बस सुनाई दे रहे हो

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