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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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कर्रार नूरी

1916 - 1990 | कराची, पाकिस्तान

कर्रार नूरी

ग़ज़ल 29

अशआर 4

नाकामियों ने और भी सरकश बना दिया

इतने हुए ज़लील कि ख़ुद्दार हो गए

कौन हो सकता है आने वाला

एक आवाज़ सी आई थी अभी

हम को भी सर कोई दरकार है अब सर के एवज़

पत्थर इक हम भी चला देते हैं पत्थर के एवज़

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ए'तिराफ़ अपने गुनाहों का मैं करता ही चलूँ

जाने किस किस को मिले मेरी सज़ा मेरे बाद

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पुस्तकें 2

 

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