कौसर नियाज़ी
ग़ज़ल 17
नज़्म 1
अशआर 17
चंद लम्हों के लिए एक मुलाक़ात रही
फिर न वो तू न वो मैं और न वो रात रही
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अपने वहशत-ज़दा कमरे की इक अलमारी में
तेरी तस्वीर अक़ीदत से सजा रक्खी है
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ज़रूर तेरी गली से गुज़र हुआ होगा
कि आज बाद-ए-सबा बे-क़रार आई है
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ऐ मसीहा कभी तू भी तो उसे देखने आ
तेरे बीमार को सुनते हैं कि आराम नहीं
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तुझे कुछ उस की ख़बर भी है भूलने वाले
किसी को याद तेरी बार बार आई है
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