खैरुद्दीन यास के शेर
क्यूँ मुजरिम-ए-वफ़ा से हैं ये बद-गुमानियाँ
क्यूँ डर रहे हैं पुर्सिश-ए-रोज़-ए-जज़ा से आप
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere