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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Khalid Ebadi's Photo'

ख़ालिद इबादी

1971 | पटना, भारत

पत्रकार, उत्तर-आधुनिक शायरों में सशक्त अभिव्यक्ति के लिए प्रख्यात

पत्रकार, उत्तर-आधुनिक शायरों में सशक्त अभिव्यक्ति के लिए प्रख्यात

ख़ालिद इबादी के शेर

शहर का भी दस्तूर वही जंगल वाला

खोजने वाले ही अक्सर खो जाते हैं

कभी कभी चुप हो जाने की ख़्वाहिश होती है

ऐसे में जब तीर-ए-सितम की बारिश होती है

अभी मरने की जल्दी है 'इबादी'

अगर ज़िंदा रहे तो फिर मिलेंगे

ज़रा सा दर्द और इतनी दवाएँ

पसंद आई नहीं चारागरी तक

हमारे हाथ काटे जा रहे थे

तुम्हारे हाथ से किरपान ले कर

मैं ज़ख़्म ज़ख़्म नहीं हूँ मगर मसीहाई

मिरे बदन में मिरी जान क्यूँ नहीं रखती

ज़रा ठहरो उसे आने दो उस की बात भी सुन लें

हमें जो इल्म है गो दिल को दहलाने ही वाला है

ये कैसा तनाज़ा है कि फ़ैसल नहीं होता

हक़ तेरा ज़ियादा है कि हुक्काम का तेरे

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