ख़ालिद इक़बाल ताइब
ग़ज़ल 3
अशआर 4
पूछते हैं ये शाएरी क्या है
हाए ऐसी भी सादगी क्या है
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वो जिन आँखों में थी बरसात के मंज़र की झलक
अब उन आँखों में सफ़ेदी न सियाही न धनक
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किस क़दर बेचारगी में हैं पड़े
कैसे कैसे चारा-गर मरने के ब'अद
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एक ही मैदान में लेटे हैं सब
क्या गदा क्या ताजवर मरने के ब'अद
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