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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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ख़ालिद इक़बाल यासिर

1952 | पाकिस्तान

ख़ालिद इक़बाल यासिर

ग़ज़ल 18

अशआर 12

आबाद बस्तियाँ थीं फ़सीलों के साए में

आपस में बस्तियों को मिलाता हुआ हिसार

पलट के आए आए कोई सुने सुने

सदा का काम फ़ज़ाओं में गूँजते तक है

भूल जाना था जिसे सब्त है दिल पर मेरे

याद रखना था जिसे उस को भुला बैठा हूँ

यही बहुत है किसी तरह से भरम ही रह जाए पेश दुनिया

अगर मयस्सर नहीं है बादा ख़याल-ए-बादा भी कम नहीं है

लगता है ज़िंदा रहने की हसरत गई नहीं

मर के भी साँस लेने की आदत गई नहीं

पुस्तकें 47

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