ख़ालिद ख़्वाज़ा के शेर
झूट होंटों पे बिला-ख़ौफ़-ओ-ख़तर आया है
मुद्दतों शहर में रह कर ये हुनर आया है
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दिल तोड़ने वाले को ख़बर हो कि अभी मैं
सर-ता-ब-क़दम इक दिल-ए-बीमार नहीं हूँ
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