ख़ालिद सुहैल के शेर
कश्तियाँ मज़बूत सब बह जाएँगी सैलाब में
काग़ज़ी इक नाव मेरी ज़ात की रह जाएगी
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हमारे दौर की तारीकियाँ मिटाने को
सहाब-ए-दर्द से ख़ुशियों का चाँद उभरा है
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