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Khan Hasnain Aqib's Photo'

हसनैन आक़िब

1971 | अकोला, भारत

हसनैन आक़िब

ग़ज़ल 33

नज़्म 2

 

अशआर 8

और थोड़ा सा बिखर जाऊँ यही ठानी है

ज़िंदगी मैं ने अभी हार कहाँ मानी है

ख़ुद को कभी मैं पा सका

जाने कितना गहरा हूँ

गरचे हल्का सा धुँदलका है तसव्वुर भी तिरा

बंद आँखों को ये मंज़र भी बहुत लगता है

जी चाहता है तर्क-ए-मोहब्बत को बार बार

आता है एक ऐसा भी लम्हा विसाल में

बहुत उदास हैं दीवारें ऊँचे महलों की

ये वो खंडर हैं कि जिन में अमीर रहते हैं

पुस्तकें 8

 

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