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ख़ान मोहम्मद ख़लील

ख़ान मोहम्मद ख़लील

ग़ज़ल 3

 

नज़्म 2

 

अशआर 3

तुम अपनी आस्तीं गर धो भी लोगे

पुकार उट्ठेगा ख़ंजर देख लेना

पहले तो चंद लोग तरफ़-दार थे मिरे

फिर वो भी वक़्त था कि ख़ुदा भी उसी का था

ख़ुद अपने दिल की सदा तेरी दस्तकों सी लगी

गुमाँ में था तेरा आना क़यास ऐसा था

 

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