ख़ान मोहम्मद ख़लील के शेर
पहले तो चंद लोग तरफ़-दार थे मिरे
फिर वो भी वक़्त था कि ख़ुदा भी उसी का था
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तुम अपनी आस्तीं गर धो भी लोगे
पुकार उट्ठेगा ख़ंजर देख लेना
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ख़ुद अपने दिल की सदा तेरी दस्तकों सी लगी
गुमाँ में था तेरा आना क़यास ऐसा था
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