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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Khaqan Khavar's Photo'

ख़ाक़ान ख़ावर

1935 - 2001 | पाकिस्तान

ख़ाक़ान ख़ावर के शेर

ये रंग रंग परिंदे ही हम से अच्छे हैं

जो इक दरख़्त पे रहते हैं बेलियों की तरह

तिरे सितम की ज़माना दुहाई देता है

कभी ये शोर तुझे भी सुनाई देता है

वो सँवर सकता है माक़ूल भी हो सकता है

मेरा अंदाज़ा मिरी भूल भी हो सकता है

यूँ हिरासाँ हैं मुसाफ़िर बस्तियों के दरमियाँ

हो गई हो शाम जैसे जंगलों के दरमियाँ

मैं सुनाता रहा दुखड़े 'ख़ावर'

और रोती रही शब भर दीवार

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