ख़ुमार कुरैशी
ग़ज़ल 13
अशआर 1
ज़ीस्त का इक गुनाह कर सके न हम
साँस के वास्ते भी मर सके न हम
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere