खुर्शीद अकबर
ग़ज़ल 32
नज़्म 19
अशआर 38
साहिल से सुना करते हैं लहरों की कहानी
ये ठहरे हुए लोग बग़ावत नहीं करते
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हम भी तिरे बेटे हैं ज़रा देख हमें भी
ऐ ख़ाक-ए-वतन तुझ से शिकायत नहीं करते
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दिल है कि तिरे पाँव से पाज़ेब गिरी है
सुनता हूँ बहुत देर से झंकार कहीं की
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दर्द का ज़ाइक़ा बताऊँ क्या
ये इलाक़ा ज़बाँ से बाहर है
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क़ुरआन का मफ़्हूम उन्हें कौन बताए
आँखों से जो चेहरों की तिलावत नहीं करते
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