ख़्वाजा साजिद
ग़ज़ल 10
अशआर 3
सारे जज़्बों के बाँध टूट गए
उस ने बस ये कहा इजाज़त है
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कल सियासत में भी मोहब्बत थी
अब मोहब्बत में भी सियासत है
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कौन कितना ज़ब्त कर सकता है कर्ब-ए-हिज्र को
रेल जब चलने लगेगी फ़ैसला हो जाएगा
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