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Komal Joya's Photo'

पाकिस्तान की नई नस्ल की शायरा

पाकिस्तान की नई नस्ल की शायरा

कोमल जोया का परिचय

मूल नाम : शाज़िया अली

जन्म : 09 Nov 1983 | कबीर वाला, पंजाब

कोमल जोया की शायरी में गहराई और तख़लीक़ी रंगीनी का इम्तिज़ाज है। उनका सफ़र शायरी की दुनिया में एक दिलचस्प और मेयारी तरक़्क़ी की कहानी है। उनके दोनों शेरी मजमुए उनकी शायरी के मुख़्तलिफ़ पहलुओं को नुमायाँ करते हैं। कोमल जोया का पहला शेरी मजमुआ “ऐसा लगता है तुझको खो दूँगी” 2013 में शाए हुआ। ये मजमुआ शायरी की दुनिया में उनकी पहली बड़ी क़दमदारी है, जिसने अदब की दुनिया में उनकी शनाख़्त को मुस्तहकम किया। इस मजमुए में कोमल जोया ने जज़्बात की पेचीदगी और इन्सानी तज्रिबात को बड़ी महारत से बयान किया है। उनकी शायरी में एक नई झलक और ताज़गी महसूस होती है, जो उनके तख़लीक़ी शुऊर की अक्कासी करती है।
कोमल जोया का दूसरा शेरी मजमुआ “हाथ पे आई दस्तक” 2022 में मंज़र-ए-आम पर आया। ये मजमुआ उनकी शायरी की तरक़्क़ी और गहराई को नुमायाँ करता है। इस मजमुए में, कोमल जोया ने अपनी शायरी में नई जिहतें तलाश की हैं और इन्सानी जज़्बात, ज़िंदगी की पेचीदगियों और मोहब्बत की गहराई को नए अंदाज़ में पेश किया है। इस मजमुए में उनकी शायरी की हर लाइन में एक ख़ास नौइयत की हस्सासियत और सोच पाई जाती है, जो क़ारईन को दिल से महसूस होती है।
कोमल जोया की शायरी का तख़लीक़ी उस्लूब मेयारी और मुन्फ़रिद है। उनकी शायरी में लफ़्ज़ों की ख़ूबसूरती, ख़याल की गहराई और जज़्बात की सच्चाई का इम्तिज़ाज पाया जाता है। उनका उस्लूब न सिर्फ़ सादा और दिलनशीन है बल्कि वो इन्सानी तज्रिबात की मुख़्तलिफ़ परतों को भी नुमायाँ करता है।

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