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कृष्ण कुमार तूर

1933 | धर्मशाला, भारत

प्रमुख आधुनिक शायर/साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित

प्रमुख आधुनिक शायर/साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित

कृष्ण कुमार तूर

ग़ज़ल 35

अशआर 20

मैं तो था मौजूद किताब के लफ़्ज़ों में

वो ही शायद मुझ को पढ़ना भूल गया

मैं वहम हूँ कि हक़ीक़त ये हाल देखने को

गिरफ़्त होता हूँ अपना विसाल देखने को

सफ़र हो तो ये लुत्फ़-ए-सफ़र है बे-मअ'नी

बदन हो तो भला क्या क़बा में रक्खा है

बंद पड़े हैं शहर के सारे दरवाज़े

ये कैसा आसेब अब घर घर लगता है

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कब तक तू आसमाँ में छुप के बैठेगा

माँग रहा हूँ मैं कब से दुआ बाहर

पुस्तकें 39

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