लाला टीका राम के शेर
आँखें सहर तलक मिरी दर से लगी रहीं
क्या पूछते हो हाल शब-ए-इंतिज़ार का
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गो दिल में ख़फ़ा है तू पर इस बात को नादाँ
कह बैठियो मत आशिक़-ए-दिल-गीर के मुँह पर
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