aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1815 - 1897 | हैदराबाद, पाकिस्तान
पूजता हूँ कभी बुत को कभी पढ़ता हूँ नमाज़
मेरा मज़हब कोई हिन्दू न मुसलमाँ समझा
जहाँ से हूँ यहाँ आया वहाँ जाऊँगा आख़िर को
मिरा ये हाल है यारो न मुस्तक़बिल न माज़ी हूँ
ख़त देख कर मिरा मिरे क़ासिद से यूँ कहा
क्या गुल नहीं हुआ वो चराग़-ए-सहर हनूज़
कोई आज़ाद हो तो हो यारो
हम तो हैं इश्क़ के असीरों में
रुख़्सार का दे शर्त नहीं बोसा-ए-लब से
जो जी में तिरे आए सो दे यार मगर दे
दीवान-ए-मातम
दीवान-ए-उर्दू
कोई आज़ाद हो तो हो यारो हम तो हैं इश्क़ के असीरों में
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