माह लखनवी के शेर
अदा-ओ-नाज़ का उस के कभी जवाब न था
वो जब भी फ़ित्ना था जब आलम-ए-शबाब न था
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तुम ख़फ़ा हो के हम को छोड़ चले
अब अजल से है सामना अपना
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