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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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महफूज़ मोहम्मद

1978 | दिल्ली, भारत

शायर, लेखक और दिल्ली वक्फ बोर्ड के अनुभाग अधिकारी

शायर, लेखक और दिल्ली वक्फ बोर्ड के अनुभाग अधिकारी

महफूज़ मोहम्मद

ग़ज़ल 4

 

अशआर 9

अपनी अम्मी को मोहब्बत से जो देखा मैं ने

पूरी जन्नत मिरी आँखों में सिमट आई है

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क़यादत फिर से पाने को है ये अल्लामा का नुस्ख़ा

सबक़ पढ़ ले अदालत के सदाक़त के शुजाअ'त के

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किधर निशाना लगा रहे हो कहाँ निगाहें टिकी हुई हैं

ये कैसे पकड़ी हुई है तुम ने कमाँ तुम्हारी मुड़ी हुई है

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तुम्हारे साथ होने से मुझे तस्कीन मिलती है

मिरे हमदम मिरे दिलबर हमारे साथ रहना तुम

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फ़ज़ाओं में मोहब्बत घोलता हूँ

मैं हिन्दी हूँ मैं उर्दू बोलता हूँ

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