महफूज़ मोहम्मद
ग़ज़ल 4
अशआर 9
अपनी अम्मी को मोहब्बत से जो देखा मैं ने
पूरी जन्नत मिरी आँखों में सिमट आई है
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क़यादत फिर से पाने को है ये अल्लामा का नुस्ख़ा
सबक़ पढ़ ले अदालत के सदाक़त के शुजाअ'त के
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किधर निशाना लगा रहे हो कहाँ निगाहें टिकी हुई हैं
ये कैसे पकड़ी हुई है तुम ने कमाँ तुम्हारी मुड़ी हुई है
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तुम्हारे साथ होने से मुझे तस्कीन मिलती है
मिरे हमदम मिरे दिलबर हमारे साथ रहना तुम
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फ़ज़ाओं में मोहब्बत घोलता हूँ
मैं हिन्दी हूँ मैं उर्दू बोलता हूँ
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