महमूद इश्क़ी
ग़ज़ल 7
अशआर 4
ख़ुशबू की तरह शब को मचलता था गुल-बदन
बिस्तर से चुन रहा हूँ मैं टूटे हुए बटन
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दूर से तकते रहे नंगे बदन
हो गए शो-केस में मैले लिबास
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फ़िक्रों को चीरते हुए तेरे ख़याल ने
टूटे हुए बदन में नया दिल लगा दिया
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मुँह छुपाए जवाब फिरते हैं
सर उठा कर खड़े हुए हैं सवाल
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