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महशर लखनवी

1866 - 1935

महशर लखनवी

ग़ज़ल 1

 

अशआर 5

शिकवा-ए-हिज्र-यार कौन करे

हुस्न को शर्मसार कौन करे

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दे के साग़र मुझे किस लुत्फ़ से साक़ी ने कहा

देखते जाओ अभी हम तुम्हें क्या देते हैं

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सादगी की इंतिहा कर दी जवानान चमन

उम्र भर रंग मिज़ाज बाग़बाँ देखा किए

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बलाएँ ले रहा हूँ इस ज़मीं के ज़र्रे ज़र्रे की

लुटा था जिस जगह राह-ए-वफ़ा में कारवाँ मेरा

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वुफ़ूर-ए-शौक़ में इक इक क़दम मेरा क़यामत था

ख़ुदा मालूम क्यूँ-कर जल्वा-ज़ार-ए-हुस्न तक पहुँचा

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पुस्तकें 1

 

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