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महशर लखनवी

1866 - 1935

महशर लखनवी

ग़ज़ल 1

 

अशआर 7

बलाएँ ले रहा हूँ इस ज़मीं के ज़र्रे ज़र्रे की

लुटा था जिस जगह राह-ए-वफ़ा में कारवाँ मेरा

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शिकवा-ए-हिज्र-यार कौन करे

हुस्न को शर्मसार कौन करे

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दे के साग़र मुझे किस लुत्फ़ से साक़ी ने कहा

देखते जाओ अभी हम तुम्हें क्या देते हैं

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बढ़ता जाता है तूल-ए-गेसू-ए-यार

घटती जाती है ज़िंदगी दिल की

मस्त हैं नश्शा-ए-जवानी से

क्या ख़बर आप को किसी दिल की

पुस्तकें 1

 

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