मजाज़ जयपुरी
ग़ज़ल 4
नज़्म 1
अशआर 3
मेरी आँखें हैं तिरे हुस्न की गोया तस्वीर
मैं ने देखा है तिरे हुस्न का आलम चुप-चाप
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ऐसे छूते हैं तसव्वुर में तुझे हम चुप-चाप
जैसे फूलों को छुआ करती है शबनम चुप-चाप
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कब का गुज़र चुका है दीवानगी का आलम
फिर भी 'मजाज़' अपना दामन रफ़ू करे है
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