माजिद देवबंदी
ग़ज़ल 9
अशआर 8
जिस को चाहें बे-इज़्ज़त कर सकते हैं
आप बड़े हैं आप को ये आसानी है
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अफ़सोस जिन के दम से हर इक सू हैं नफ़रतें
हम ने तअल्लुक़ात उन्हीं से बढ़ा लिए
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याद रक्खो इक न इक दिन साँप बाहर आएँगे
आस्तीनों में उन्हें कब तक छुपाया जाएगा
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फिर तुम्हारे पाँव छूने ख़ुद बुलंदी आएगी
सब दिलों पर राज कर के ताज-दारी सीख लो
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इन आँसुओं की हिफ़ाज़त बहुत ज़रूरी है
अँधेरी रात में जुगनू भी काम आते हैं
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