मेजर जूलियन फेलिज़ तालिब के शेर
फ़रहाद ओ क़ैस ओ वामिक़ पहुँचे ब-मंज़िल-ए-इश्क़
ढूँडा है जिस ने जिस को आख़िर वो पा चुका है
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हाए 'तालिब' देखने को उस की सूरत के लिए
मुर्ग़-ए-दिल तड़पे है कैसा उड़ के मिलना चाहिए
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