मनीश शुक्ला
ग़ज़ल 25
अशआर 29
मिरी आवारगी ही मेरे होने की अलामत है
मुझे फिर इस सफ़र के ब'अद भी कोई सफ़र देना
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मैं था जब कारवाँ के साथ तो गुलज़ार थी दुनिया
मगर तन्हा हुआ तो हर तरफ़ सहरा ही सहरा था
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तुझे जब देखता हूँ तो ख़ुद अपनी याद आती है
मिरा अंदाज़ हँसने का कभी तेरे ही जैसा था
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वीडियो 5
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