मन्नू लाल सफ़ा लखनवी के शेर
चर्ख़ को कब ये सलीक़ा है सितमगारी में
कोई माशूक़ है इस पर्दा-ए-ज़ंगारी में
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टैग : ज़र्बुल-मसल
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