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मंज़ूर हाशमी

1935 - 2008 | अलीगढ़, भारत

मंज़ूर हाशमी

ग़ज़ल 21

अशआर 29

जाने उस की कहानी में कितने पहलू हैं

कि जब सुनो तो नया वाक़िआ निकलता है

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नई फ़ज़ा के परिंदे हैं कितने मतवाले

कि बाल-ओ-पर से भी पहले उड़ान माँगते हैं

लिक्खे थे सफ़र पाँव में किस तरह ठहरते

और ये भी कि तुम ने तो पुकारा ही नहीं था

सुना है सच्ची हो नीयत तो राह खुलती है

चलो सफ़र करें कम से कम इरादा करें

हमारे साथ भी चलता है रस्ता

हमारे बा'द भी रस्ता चलेगा

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चित्र शायरी 1

 

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