मक़बूल आमिर
ग़ज़ल 4
अशआर 4
मेरी तारीफ़ करे या मुझे बद-नाम करे
जिस ने जो बात भी करनी है सर-ए-आम करे
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मैं ऐसी राह पे निकला कि मेरी ख़ुश-बख़्ती
तमाम उम्र मिरी खोज में भटकती रही
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मुझे ख़ुद अपनी नहीं उस की फ़िक्र लाहक़ है
बिछड़ने वाला भी मुझ सा ही बे-सहारा था
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सफ़र पे निकलें मगर सम्त की ख़बर तो मिले
कोई किरन कोई जुगनू दिखाई दे तो चलें
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