मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल 19
अशआर 10
क़त्ल-ए-हुसैन अस्ल में मर्ग-ए-यज़ीद है
इस्लाम ज़िंदा होता है हर कर्बला के बाद
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तुझ से क्या सुब्ह तलक साथ निभेगा ऐ उम्र
शब-ए-फ़ुर्क़त की जो घड़ियों का गुज़रना है यही
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वही दिन है हमारी ईद का दिन
जो तिरी याद में गुज़रता है
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