मीम हसन लतीफ़ी
ग़ज़ल 4
नज़्म 7
अशआर 1
वाबस्ता मेरी याद से कुछ तल्ख़ियाँ भी थीं
अच्छा किया कि मुझ को फ़रामोश कर दिया
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere