मीर अली औसत रशक
ग़ज़ल 19
अशआर 3
हद से गुज़रा जब इंतिज़ार तिरा
मौत का हम ने इंतिज़ार किया
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अब तो बातें भी हो गईं मौक़ूफ़
अरिनी है न लन-तरानी है
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सुना रहा हूँ नकीरैन को फ़साना-ए-हिज्र
सवाल उन के जुदा हैं मिरे जवाब जुदा
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