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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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मीर हसन

1717 - 1786 | लखनऊ, भारत

प्रमुख मर्सिया-निगार, मसनवी ‘सहर-उल-बयान’ के लिए विख्यात

प्रमुख मर्सिया-निगार, मसनवी ‘सहर-उल-बयान’ के लिए विख्यात

मीर हसन

ग़ज़ल 95

अशआर 106

सदा ऐश दौराँ दिखाता नहीं

गया वक़्त फिर हाथ आता नहीं

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दोस्ती किस से थी किस से मुझे प्यार था

जब बुरे वक़्त पे देखा तो कोई यार था

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आसाँ समझियो तुम नख़वत से पाक होना

इक उम्र खो के हम ने सीखा है ख़ाक होना

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आश्ना बेवफ़ा नहीं होता

बेवफ़ा आश्ना नहीं होता

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और कुछ तोहफ़ा था जो लाते हम तेरे नियाज़

एक दो आँसू थे आँखों में सो भर लाएँ हैं हम

रुबाई 4

 

नअत 1

 

मसनवी 1

 

पुस्तकें 65

चित्र शायरी 5

 

"लखनऊ" के और शायर

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